शुक्रवार, 6 मई 2016

शबरी का आश्रम - अरण्यकाण्ड (18)

तदन्तर दोनों भाई कबन्ध के बताये अनुसार सुग्रीव से मिलने के उद्देश्य से पम्पा नामक पुष्करिणी के पश्चिम तट पर पहुँचे। उन्होंने वहाँ शबरी के रमणीय आश्रम को देखा। शबरी सिद्ध तपस्विनी थी। उसने राम-लक्ष्मण का अपने आश्रम में पाद्य, अर्ध्य आदि से यथोचित सत्कार और पूजन किया।

रामचन्द्र ने शबरी से पूछा, "हे तपस्विनी! तुम्हारी तपस्या में किसी प्रकार की कोई विघ्न-बाधा तो नहीं पड़ती? कोई राक्षस आदि तुम्हें कष्ट तो नहीं देते?"

राम के स्नेहयुक्त शब्द सुन कर वृद्धा शबरी हाथ जोड़ कर बोली, "हे प्रभो! मेरे इस आश्रम में आपके पधारने से मेरी सम्पूर्ण तपस्या सफल हो गई। मेरे गुरुदेव तो उसी दिन बैकुण्ठवासी हो गये थे जिस दिन आप चित्रकूट में पधारे थे। अपने अन्तिम समय में उन्होंने ही आपके विषय में मुझे बताया था। उन्होंने कहा था कि मेरे आश्रम में आपके अतिथिरूप में आने के पश्चात आपके दर्शन करके मैं श्रेष्ठ एवं अक्षय लोकों में जा पाउँगी। हे पुरुषसिंह! मैंने आपके लिये पम्पातट पर उत्पन्न होने वाले नाना प्रकार के मीठे और स्वादिष्ट फलों का संचय किया है। कृपया इन्हें ग्रहण कर के मुझे कृतार्थ करें।"

राम के द्वारा शबरी से उनके गुरुजनों के विषय में पूछने पर शबरी ने बताया, "हे राम! यह सामने जो सघन वन दिखाई देता है, वह मतंग वन है। मेरे गुरुजनों ने एक बार यहाँ विशाल यज्ञ किया था। यद्यपि इस यज्ञ को हुये अनेक वर्ष हो गये हैं तथापि अभी तक उस यज्ञ के सुगन्धित धुएँ से सम्पूर्ण वातावरण सुगन्धित हो रहा है। यज्ञ के पात्र अभी भी यथास्थान रखे हुये हैं। हे प्रभो! मैंने अपने जीवन की सभी धार्मिक मनोकामनाएँ पूरी कर ली हैं। केवल आपके दर्शनों की अभिलाषा शेष थी, वह आज पूरी हो गई। अतः आप मुझे अनुमति दें कि मैं इस नश्वर शरीर का परित्याग कर के उसी लोक में चली जाऊँ जिस लोक में मेरे गुरुजन गये हैं।"

शबरी की अदम्य आध्यात्मिक शक्ति को देख कर राम ने कहा, "हे परम तपस्विनी! तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी होगी। मैं प्रार्थना करता हूँ कि परमात्मा तुम्हारी मनोकामना पूरी करें।"

रामचन्द्र जी का आशीर्वाद पा कर शबरी ने समाधि लगाई और अपने प्राण विसर्जित कर दिये। इसके पश्चात् शबरी का अन्तिम संस्कार कर के दोनों भाई पम्पा सरोवर पहुँचे। निकट ही पम्पा नदी बह रही थी जिसके तट पर नाना प्रकार के वृक्ष पुष्पों एवं पल्लवों से शोभायमान हो रहे थे। उस स्थान की शोभा को देख कर राम अपना सारा शोक भूल गये। वे सुग्रीव से मिलने की इच्छा से पम्पा के किनारे-किनारे पुरी की ओर चलने लगे।

॥अरण्यकाण्ड समाप्त॥

16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर वर्णन सूर्य भैया

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  2. क्या बात है सर जी जै श्री राम

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  3. Sir is line ka shlok kisi bhi ramayana me milta h kya ki ram pampa sarowar ke kinare chalte chalte puri ki traf chalne lage. Or rishyamuk parvat ki vastu isthiti vartman me

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  4. Sir kripya aap puri ko traf chalne lage vala shlok bhej skte h 75 sarg ka kon se no. Ka slok h

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